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भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों से जुड़े इस अत्यंत महत्वपूर्ण के सफल आयोजन के लिए मैं शिक्षा मंत्री, श्री धर्मेंद्र प्रधान जी को, उनकी पूरी टीम को, सभी प्रतिभागियों को तथा आयोजन के लिए सक्रिय योगदान देने वाले राष्ट्रपति सचिवालय के सभी लोगों को बधाई देती हूं। इस के लिए चुने गए विषयों पर हुए विचार-मन्थन का सारांश सुनकर मैं कह सकती हूं कि उच्च-शिक्षा से जुड़े अत्यंत महत्वपूर्ण आयामों पर उपयोगी निष्कर्ष निकले हैं। इस समापन सत्र में संक्षिप्त प्रस्तुतियां करने वाले विशेषज्ञों तथा विस्तार से गहन विमर्श करने वाले उनकी टीमों के सभी सदस्यों की मैं सराहना करती हूं। पाठ्यक्रमों राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत लागू किए गए ऐतिहासिक बदलाव हैं। मुझे विश्वास है कि विद्यार्थियों की सुविधा को आप सब केंद्र में रखेंगे। के माध्यम से, को आप सब प्रभावी बनाएंगे। इससे विद्यार्थियों को बहुमुखी प्रतिभा विकसित करने तथा अपनी पसंद के पाठ्यक्रमों में अध्ययन करने के अवसर प्राप्त होंगे। इक्कीसवीं सदी की पहली चौथाई के अंत में हम स्वाधीन भारत के अमृत काल से गुजर रहे हैं। इस सदी के पूर्वार्ध के सम्पन्न होने के पहले ही भारत को विकसित देश बनाने का हमारा राष्ट्रीय लक्ष्य है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शिक्षण संस्थानों से जुड़े सभी लोगों को तथा विद्यार्थियों को के आधार पर आगे बढ़ना होगा। यह प्रयास होना चाहिए कि भारत के उच्च-शिक्षा संस्थानों के प्रति दूसरे देश आकर्षित हों, तथा अन्य देशों के शिक्षण संस्थानों से हमारे देश की उच्च-शिक्षा व्यवस्था का जुड़ाव बढ़े। के मजबूत होने से हमारे युवा विद्यार्थी इक्कीसवीं सदी के विश्व में अपनी और अधिक प्रभावी पहचान बनाएंगे। देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में विश्व-स्तरीय शिक्षा मिलने से विदेश जाकर पढ़ने की प्रवृत्ति में कमी आएगी। देश की युवा प्रतिभा का राष्ट्र-निर्माण में बेहतर उपयोग हो सकेगा। हमारा प्रयास होना चाहिए कि विकसित देशों से विद्यार्थी और शिक्षक भारत आकर शिक्षा और अनुसंधान से जुड़ें। हमारा देश विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। आत्मनिर्भर होना, सही अर्थों में विकसित, बड़ी तथा सुदृढ़ अर्थ-व्यवस्था की पहचान है। अनुसंधान और नवाचार पर आधारित आत्म-निर्भरता हमारे उद्यमों और अर्थ-व्यवस्था को मजबूत बनाएगी। ऐसे अनुसंधान और नवाचार को हर संभव सहायता मिलनी चाहिए। विकसित अर्थ-व्यवस्थाओं में मजबूत दिखाई देता है। उद्योग जगत और उच्च शिक्षण संस्थानों में निरंतर आदान-प्रदान होने से शोध एवं अनुसंधान कार्य, अर्थ-व्यवस्था और समाज की आवश्यकताओं से जुड़े रहते हैं। आप सबको पारस्परिक हित में औद्योगिक संस्थानों के वरिष्ठ लोगों से निरंतर विचार-विमर्श करने के संस्थागत प्रयास करने चाहिए। इससे शोधकार्य करने वाले शिक्षकों और विद्यार्थियों को बहुत लाभ होगा। शिक्षण संस्थानों की प्रयोगशालाओं को स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय तथा वैश्विक आवश्यकताओं से जोड़ने का कार्य आप सबकी प्राथमिकता होनी चाहिए। इन संदर्भों में आज के एक में, अनुसंधान को उपयोगी बनाने की दृष्टि से, उच्च शिक्षण संस्थानों पर आधारित को प्रोत्साहित करने के सुझाव दिए गए हैं। साथ ही, को उपयोगी बनाने के अन्य सुझाव भी दिए गए हैं। ऐसे सुझावों को कार्यरूप देने से हमारी आत्म-निर्भरता और मजबूत होगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार, विद्यार्थियों को 21वीं सदी के संदर्भ में, विश्व-स्तर पर सक्षम बनाना, हमारे शिक्षण संस्थानों का लक्ष्य है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अनेक आयामों पर कार्य करना होगा। शिक्षा प्रणाली हो और साथ ही विद्यार्थियों की विशेष प्रतिभाओं और आवश्यकताओं के अनुसार हो, यह अनिवार्यता भी है और चुनौती भी। इस संदर्भ में, आज के विचार-विमर्श को आधार बनाकर निरंतर सचेत और सक्रिय रहने की आवश्यकता है। अनुभव के आधार पर, समुचित बदलाव होते रहने चाहिए। विद्यार्थियों को सक्षम बनाना ही ऐसे बदलावों का उद्देश्य होना चाहिए। शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता का आकलन एक जटिल परंतु अनिवार्य प्रक्रिया है। आकलन के लक्ष्य, सिद्धांत और प्रणालियों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के उद्देश्यों के अनुरूप विकसित करना एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। किसी भी आकलन पद्धति की सफलता उसकी स्वीकार्यता और विश्वसनीयता में निहित होती है। आकलन-कर्ताओं का निष्पक्ष और आदरणीय होना भी आकलन पद्धति की विश्वसनीयता की अनिवार्य शर्त है। इन मूलभूत आयामों के मजबूत रहने से ही देश-विदेश में शिक्षण संस्थानों के आकलन को समुचित महत्व दिया जाएगा। माननीय शिक्षाविदो, उच्च शिक्षण संस्थानों को वेग से बहने वाली स्वच्छ नदियों की तरह अपने प्रवाह क्षेत्र को उपजाऊ बनाना चाहिए। इस प्रवाह में संस्थानों की परंपरा और भविष्य दोनों समाहित हैं। कल सायं-काल मुझे कुछ ऐसे पूर्व विद्यार्थियों से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ जिन्होंने अपने शिक्षण संस्थानों को आर्थिक सहायता प्रदान की है, के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है तथा देश के विकास के प्रति सक्रियता बनाए रखी है। उच्च शिक्षा से जुड़े सभी वरिष्ठ लोगों को समाज तथा परंपरा से जुड़कर, उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ने के मार्गों का निर्माण करना चाहिए। चरित्रवान, विवेकशील और सक्षम युवाओं के बल पर ही कोई भी राष्ट्र शक्तिशाली और विकसित बनता है। शिक्षण संस्थानों में हमारे युवा विद्यार्थियों के चरित्र, विवेक और क्षमता का निर्माण होता है। हमारे देश के युवा विद्यार्थियों का समग्र निर्माण ही आप सबके राष्ट्र-प्रेम और समाज-सेवा का प्रमाण होगा। मुझे विश्वास है कि आप सब उच्च शिक्षा के उदात्त आदर्शों को अवश्य प्राप्त करेंगे तथा भारत माता की युवा संततियों को स्वर्णिम भविष्य का उपहार देंगे। इसी विश्वास के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं। धन्यवाद! जय हिन्द!
भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों से जुड़े इस अत्यंत महत्वपूर्ण के सफल आयोजन के लिए मैं शिक्षा मंत्री, श्री धर्मेंद्र प्रधान जी को, उनकी पूरी टीम को, सभी प्रतिभागियों को तथा आयोजन के लिए सक्रिय योगदान देने वाले राष्ट्रपति सचिवालय के सभी लोगों को बधाई देती हूं। इस के लिए चुने गए विषयों पर हुए विचार-मन्थन का सारांश सुनकर मैं कह सकती हूं कि उच्च-शिक्षा से जुड़े अत्यंत महत्वपूर्ण आयामों पर उपयोगी निष्कर्ष निकले हैं। इस समापन सत्र में संक्षिप्त प्रस्तुतियां करने वाले विशेषज्ञों तथा विस्तार से गहन विमर्श करने वाले उनकी टीमों के सभी सदस्यों की मैं सराहना करती हूं। पाठ्यक्रमों राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत लागू किए गए ऐतिहासिक बदलाव हैं। मुझे विश्वास है कि विद्यार्थियों की सुविधा को आप सब केंद्र में रखेंगे। के माध्यम से, को आप सब प्रभावी बनाएंगे। इससे विद्यार्थियों को बहुमुखी प्रतिभा विकसित करने तथा अपनी पसंद के पाठ्यक्रमों में अध्ययन करने के अवसर प्राप्त होंगे। इक्कीसवीं सदी की पहली चौथाई के अंत में हम स्वाधीन भारत के अमृत काल से गुजर रहे हैं। इस सदी के पूर्वार्ध के सम्पन्न होने के पहले ही भारत को विकसित देश बनाने का हमारा राष्ट्रीय लक्ष्य है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शिक्षण संस्थानों से जुड़े सभी लोगों को तथा विद्यार्थियों को के आधार पर आगे बढ़ना होगा। यह प्रयास होना चाहिए कि भारत के उच्च-शिक्षा संस्थानों के प्रति दूसरे देश आकर्षित हों, तथा अन्य देशों के शिक्षण संस्थानों से हमारे देश की उच्च-शिक्षा व्यवस्था का जुड़ाव बढ़े। के मजबूत होने से हमारे युवा विद्यार्थी इक्कीसवीं सदी के विश्व में अपनी और अधिक प्रभावी पहचान बनाएंगे। देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में विश्व-स्तरीय शिक्षा मिलने से विदेश जाकर पढ़ने की प्रवृत्ति में कमी आएगी। देश की युवा प्रतिभा का राष्ट्र-निर्माण में बेहतर उपयोग हो सकेगा। हमारा प्रयास होना चाहिए कि विकसित देशों से विद्यार्थी और शिक्षक भारत आकर शिक्षा और अनुसंधान से जुड़ें। हमारा देश विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। आत्मनिर्भर होना, सही अर्थों में विकसित, बड़ी तथा सुदृढ़ अर्थ-व्यवस्था की पहचान है। अनुसंधान और नवाचार पर आधारित आत्म-निर्भरता हमारे उद्यमों और अर्थ-व्यवस्था को मजबूत बनाएगी। ऐसे अनुसंधान और नवाचार को हर संभव सहायता मिलनी चाहिए। विकसित अर्थ-व्यवस्थाओं में मजबूत दिखाई देता है। उद्योग जगत और उच्च शिक्षण संस्थानों में निरंतर आदान-प्रदान होने से शोध एवं अनुसंधान कार्य, अर्थ-व्यवस्था और समाज की आवश्यकताओं से जुड़े रहते हैं। आप सबको पारस्परिक हित में औद्योगिक संस्थानों के वरिष्ठ लोगों से निरंतर विचार-विमर्श करने के संस्थागत प्रयास करने चाहिए। इससे शोधकार्य करने वाले शिक्षकों और विद्यार्थियों को बहुत लाभ होगा। शिक्षण संस्थानों की प्रयोगशालाओं को स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय तथा वैश्विक आवश्यकताओं से जोड़ने का कार्य आप सबकी प्राथमिकता होनी चाहिए। इन संदर्भों में आज के एक में, अनुसंधान को उपयोगी बनाने की दृष्टि से, उच्च शिक्षण संस्थानों पर आधारित को प्रोत्साहित करने के सुझाव दिए गए हैं। साथ ही, को उपयोगी बनाने के अन्य सुझाव भी दिए गए हैं। ऐसे सुझावों को कार्यरूप देने से हमारी आत्म-निर्भरता और मजबूत होगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार, विद्यार्थियों को 21वीं सदी के संदर्भ में, विश्व-स्तर पर सक्षम बनाना, हमारे शिक्षण संस्थानों का लक्ष्य है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अनेक आयामों पर कार्य करना होगा। शिक्षा प्रणाली हो और साथ ही विद्यार्थियों की विशेष प्रतिभाओं और आवश्यकताओं के अनुसार हो, यह अनिवार्यता भी है और चुनौती भी। इस संदर्भ में, आज के विचार-विमर्श को आधार बनाकर निरंतर सचेत और सक्रिय रहने की आवश्यकता है। अनुभव के आधार पर, समुचित बदलाव होते रहने चाहिए। विद्यार्थियों को सक्षम बनाना ही ऐसे बदलावों का उद्देश्य होना चाहिए। शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता का आकलन एक जटिल परंतु अनिवार्य प्रक्रिया है। आकलन के लक्ष्य, सिद्धांत और प्रणालियों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के उद्देश्यों के अनुरूप विकसित करना एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। किसी भी आकलन पद्धति की सफलता उसकी स्वीकार्यता और विश्वसनीयता में निहित होती है। आकलन-कर्ताओं का निष्पक्ष और आदरणीय होना भी आकलन पद्धति की विश्वसनीयता की अनिवार्य शर्त है। इन मूलभूत आयामों के मजबूत रहने से ही देश-विदेश में शिक्षण संस्थानों के आकलन को समुचित महत्व दिया जाएगा। माननीय शिक्षाविदो, उच्च शिक्षण संस्थानों को वेग से बहने वाली स्वच्छ नदियों की तरह अपने प्रवाह क्षेत्र को उपजाऊ बनाना चाहिए। इस प्रवाह में संस्थानों की परंपरा और भविष्य दोनों समाहित हैं। कल सायं-काल मुझे कुछ ऐसे पूर्व विद्यार्थियों से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ जिन्होंने अपने शिक्षण संस्थानों को आर्थिक सहायता प्रदान की है, के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है तथा देश के विकास के प्रति सक्रियता बनाए रखी है। उच्च शिक्षा से जुड़े सभी वरिष्ठ लोगों को समाज तथा परंपरा से जुड़कर, उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ने के मार्गों का निर्माण करना चाहिए। चरित्रवान, विवेकशील और सक्षम युवाओं के बल पर ही कोई भी राष्ट्र शक्तिशाली और विकसित बनता है। शिक्षण संस्थानों में हमारे युवा विद्यार्थियों के चरित्र, विवेक और क्षमता का निर्माण होता है। हमारे देश के युवा विद्यार्थियों का समग्र निर्माण ही आप सबके राष्ट्र-प्रेम और समाज-सेवा का प्रमाण होगा। मुझे विश्वास है कि आप सब उच्च शिक्षा के उदात्त आदर्शों को अवश्य प्राप्त करेंगे तथा भारत माता की युवा संततियों को स्वर्णिम भविष्य का उपहार देंगे। इसी विश्वास के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं। धन्यवाद! जय हिन्द!
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