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जनजातीय गौरव वर्ष के दौरान आयोजित ‘आदि महोत्सव 2025’ का शुभारंभ करते हुए मुझे विशेष प्रसन्नता हो रही है। भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के दिन, बीते 15 नवंबर को, साल भर चलने वाले ‘जनजातीय गौरव वर्ष’ का शुभारंभ करने का सौभाग्य भी मुझे मिला था। यह जनजातीय गौरव वर्ष उनकी 150वीं जयंती के दिन इस वर्ष 15 नवंबर को सम्पन्न होगा। मैं, सभी देशवासियों की ओर से, भगवान बिरसा मुंडा के सम्मान में सादर नमन करती हूं। इस राष्ट्रीय जनजातीय उत्सव का आयोजन करने के लिए, श्री जुएल ओराम जी के नेतृत्व में सक्रिय, केंद्र सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय के सभी लोगों की मैं सराहना करती हूं। देवियो और सज्जनो, आदि महोत्सव जनजातीय विरासत को प्रस्तुत करने और उसे प्रोत्साहित करने का एक प्रमुख आयोजन है। ऐसे उत्सव, जनजातीय समाज के उद्यमियों, शिल्पकारों और कलाकारों को जुड़ने का बहुत अच्छा अवसर प्रदान करते हैं। मुझे बताया गया है कि वर्ष 2017-18 से आज तक, विभिन्न स्थानों में, 45 ‘आदि महोत्सव’ आयोजित किए जा चुके हैं। देवियो और सज्जनो, जनजातीय समाज की शिल्प-कलाएं, खान-पान, वस्त्र और आभूषण, चिकित्सा पद्धतियां, घरेलू उपकरण तथा खेल-कूद हमारे देश की अनमोल धरोहर हैं। साथ ही वे आधुनिक और वैज्ञानिक भी हैं क्योंकि उनमें प्रकृति के साथ सहज तालमेल दिखाई देता है। वित्त वर्ष 2025-26 के बजट में, केंद्र सरकार ने, आदिवासी विकास हेतु शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, कौशल विकास तथा आर्थिक सशक्तीकरण पर विशेष बल दिया है। आदिवासी समुदाय के लोग लाभार्थी होने के साथ-साथ विकसित भारत के निर्माण में सक्रिय योगदान दे रहे हैं। जनजातीय समाज के विकास पर विशेष ध्यान देने के पीछे यह विचार है कि जब जनजातीय समाज विकसित होगा तभी हमारा देश भी सही अर्थों में विकसित होगा। इसीलिए जनजातीय अस्मिता के प्रति गौरव का भाव बढ़ाने के साथ-साथ जनजातीय समाज का तेज गति से विकास करने के लिए बहुआयामी प्रयास किए जा रहे हैं। वर्ष 2021 से प्रतिवर्ष भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के दिन 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस मनाने की परंपरा स्थापित की गई है। जनजातीय महानायकों की स्मृति में देश के विभिन्न क्षेत्रों में संग्रहालय विकसित किए जा रहे हैं। रांची में स्थित भगवान बिरसा मुंडा संग्रहालय एक तीर्थ स्थल की तरह सम्मानित हो रहा है। जबलपुर में राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह तथा छिंदवाड़ा में श्री बादल भोई जैसे जनजातीय स्वाधीनता सेनानियों की स्मृति में निर्मित संग्रहालयों में जाकर, लोग उनके महान योगदान से परिचित हो रहे हैं। जनजातीय विभूतियों तथा आदिवासी समाज की जीवन- शैली की एक झलक आप सब राष्ट्रपति भवन में विकसित किए गए जनजातीय दर्पण नामक संग्रहालय में देख सकते हैं। देवियो और सज्जनो, अपनी जीवन-यात्रा के दौरान जो प्रयास मैंने किए हैं, उनमें, संथाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के अपने प्रयास को याद करके मुझे बहुत प्रसन्नता होती है। वर्ष 2003 में श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी के कार्यकाल में वह संभव हुआ था। उसी में जनजातीय समाज में प्रचलित बोडो भाषा को भी संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था। जनजातीय अस्मिता के प्रति संवेदना का वह भाव पिछले 10 वर्षों के दौरान और अधिक व्यापक तथा सक्रिय रूप में देखा जा रहा है। वर्ष 2023 में, जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर समुदाय के लिए अभियान का शुभारंभ किया गया था। इस अभियान के लिए 24 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था। अभियान की सफलता को और बड़े पैमाने पर विस्तार देने के लिए तथा जनजातीय समाज के पांच करोड़ से भी अधिक लोगों को सरकार की योजनाओं से लाभान्वित करने के लिए, पिछले वर्ष, गांधी जयंती के दिन, ‘धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान’ शुरू किया गया। इस अभियान के लिए 80 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। 63,000 जनजातीय गांवों को सड़कों से जोड़ना तथा सभी जनजातीय परिवारों को स्थायी आवास उपलब्ध कराना इस अभियान के प्रमुख लक्ष्य हैं। मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई है कि आदिवासी समाज के आर्थिक सशक्तीकरण एवं रोजगार की दिशा में काफी प्रगति हो रही है। लगभग चार हजार वन-धन विकास केन्द्रों के जरिए 12 लाख से अधिक आदिवासी भाई- बहनों को जोड़ा गया है। किसी भी समाज के विकास में शिक्षा की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है। यह प्रसन्नता की बात है कि देश में 470 से अधिक एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों के माध्यम से लगभग सवा लाख आदिवासी बच्चों को स्कूली शिक्षा दी जा रही है। साथ ही, लगभग 250 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों का निर्माण किया जा रहा है। तीस लाख से अधिक आदिवासी विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति मिल रही है जिसमें विदेश में अध्ययन करने के लिए दी जा रही सहायता भी शामिल है। पिछले 10 वर्षों में आदिवासी बहुल क्षेत्रों में 30 नए मेडिकल कॉलेज शुरू किए गए हैं। जनजातीय समाज के स्वास्थ्य से जुड़ी एक विशेष समस्या का समाधान करने के लिए राष्ट्रीय मिशन चलाया गया है। इस मिशन के तहत, वर्ष 2047 तक, सिकल सेल अनिमिया के उन्मूलन का लक्ष्य रखा गया है। विकसित भारत के लक्ष्य को समग्र रूप से हासिल करने से जुड़े इस मिशन के अंतर्गत लगभग पांच करोड़ लोगों की स्क्रीनिंग की जा चुकी है। विकास के ऐसे बहुआयामी प्रयासों के बल पर अरुणाचल प्रदेश से गुजरात तक तथा जम्मू-कश्मीर से अंडमान निकोबार द्वीप-समूह तक, आदिवासी परिवारों के विकास को नई ऊर्जा मिली है। साथ ही, लोगों में आदिवासी समाज के प्रति जागरूकता और सम्मान का भाव बढ़ा है। मैं इस आदि महोत्सव की सफलता की कामना करती हूं। मैं आशा करती हूं कि जनजातीय गौरव वर्ष के दौरान जनजातीय समाज की उन्नति के अनेक स्वर्णिम अध्याय लिखे जाएंगे। इसी कामना और आशा के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं।
जनजातीय गौरव वर्ष के दौरान आयोजित ‘आदि महोत्सव 2025’ का शुभारंभ करते हुए मुझे विशेष प्रसन्नता हो रही है। भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के दिन, बीते 15 नवंबर को, साल भर चलने वाले ‘जनजातीय गौरव वर्ष’ का शुभारंभ करने का सौभाग्य भी मुझे मिला था। यह जनजातीय गौरव वर्ष उनकी 150वीं जयंती के दिन इस वर्ष 15 नवंबर को सम्पन्न होगा। मैं, सभी देशवासियों की ओर से, भगवान बिरसा मुंडा के सम्मान में सादर नमन करती हूं। इस राष्ट्रीय जनजातीय उत्सव का आयोजन करने के लिए, श्री जुएल ओराम जी के नेतृत्व में सक्रिय, केंद्र सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय के सभी लोगों की मैं सराहना करती हूं। देवियो और सज्जनो, आदि महोत्सव जनजातीय विरासत को प्रस्तुत करने और उसे प्रोत्साहित करने का एक प्रमुख आयोजन है। ऐसे उत्सव, जनजातीय समाज के उद्यमियों, शिल्पकारों और कलाकारों को जुड़ने का बहुत अच्छा अवसर प्रदान करते हैं। मुझे बताया गया है कि वर्ष 2017-18 से आज तक, विभिन्न स्थानों में, 45 ‘आदि महोत्सव’ आयोजित किए जा चुके हैं। देवियो और सज्जनो, जनजातीय समाज की शिल्प-कलाएं, खान-पान, वस्त्र और आभूषण, चिकित्सा पद्धतियां, घरेलू उपकरण तथा खेल-कूद हमारे देश की अनमोल धरोहर हैं। साथ ही वे आधुनिक और वैज्ञानिक भी हैं क्योंकि उनमें प्रकृति के साथ सहज तालमेल दिखाई देता है। वित्त वर्ष 2025-26 के बजट में, केंद्र सरकार ने, आदिवासी विकास हेतु शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, कौशल विकास तथा आर्थिक सशक्तीकरण पर विशेष बल दिया है। आदिवासी समुदाय के लोग लाभार्थी होने के साथ-साथ विकसित भारत के निर्माण में सक्रिय योगदान दे रहे हैं। जनजातीय समाज के विकास पर विशेष ध्यान देने के पीछे यह विचार है कि जब जनजातीय समाज विकसित होगा तभी हमारा देश भी सही अर्थों में विकसित होगा। इसीलिए जनजातीय अस्मिता के प्रति गौरव का भाव बढ़ाने के साथ-साथ जनजातीय समाज का तेज गति से विकास करने के लिए बहुआयामी प्रयास किए जा रहे हैं। वर्ष 2021 से प्रतिवर्ष भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के दिन 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस मनाने की परंपरा स्थापित की गई है। जनजातीय महानायकों की स्मृति में देश के विभिन्न क्षेत्रों में संग्रहालय विकसित किए जा रहे हैं। रांची में स्थित भगवान बिरसा मुंडा संग्रहालय एक तीर्थ स्थल की तरह सम्मानित हो रहा है। जबलपुर में राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह तथा छिंदवाड़ा में श्री बादल भोई जैसे जनजातीय स्वाधीनता सेनानियों की स्मृति में निर्मित संग्रहालयों में जाकर, लोग उनके महान योगदान से परिचित हो रहे हैं। जनजातीय विभूतियों तथा आदिवासी समाज की जीवन- शैली की एक झलक आप सब राष्ट्रपति भवन में विकसित किए गए जनजातीय दर्पण नामक संग्रहालय में देख सकते हैं। देवियो और सज्जनो, अपनी जीवन-यात्रा के दौरान जो प्रयास मैंने किए हैं, उनमें, संथाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के अपने प्रयास को याद करके मुझे बहुत प्रसन्नता होती है। वर्ष 2003 में श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी के कार्यकाल में वह संभव हुआ था। उसी में जनजातीय समाज में प्रचलित बोडो भाषा को भी संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था। जनजातीय अस्मिता के प्रति संवेदना का वह भाव पिछले 10 वर्षों के दौरान और अधिक व्यापक तथा सक्रिय रूप में देखा जा रहा है। वर्ष 2023 में, जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर समुदाय के लिए अभियान का शुभारंभ किया गया था। इस अभियान के लिए 24 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था। अभियान की सफलता को और बड़े पैमाने पर विस्तार देने के लिए तथा जनजातीय समाज के पांच करोड़ से भी अधिक लोगों को सरकार की योजनाओं से लाभान्वित करने के लिए, पिछले वर्ष, गांधी जयंती के दिन, ‘धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान’ शुरू किया गया। इस अभियान के लिए 80 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। 63,000 जनजातीय गांवों को सड़कों से जोड़ना तथा सभी जनजातीय परिवारों को स्थायी आवास उपलब्ध कराना इस अभियान के प्रमुख लक्ष्य हैं। मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई है कि आदिवासी समाज के आर्थिक सशक्तीकरण एवं रोजगार की दिशा में काफी प्रगति हो रही है। लगभग चार हजार वन-धन विकास केन्द्रों के जरिए 12 लाख से अधिक आदिवासी भाई- बहनों को जोड़ा गया है। किसी भी समाज के विकास में शिक्षा की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है। यह प्रसन्नता की बात है कि देश में 470 से अधिक एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों के माध्यम से लगभग सवा लाख आदिवासी बच्चों को स्कूली शिक्षा दी जा रही है। साथ ही, लगभग 250 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों का निर्माण किया जा रहा है। तीस लाख से अधिक आदिवासी विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति मिल रही है जिसमें विदेश में अध्ययन करने के लिए दी जा रही सहायता भी शामिल है। पिछले 10 वर्षों में आदिवासी बहुल क्षेत्रों में 30 नए मेडिकल कॉलेज शुरू किए गए हैं। जनजातीय समाज के स्वास्थ्य से जुड़ी एक विशेष समस्या का समाधान करने के लिए राष्ट्रीय मिशन चलाया गया है। इस मिशन के तहत, वर्ष 2047 तक, सिकल सेल अनिमिया के उन्मूलन का लक्ष्य रखा गया है। विकसित भारत के लक्ष्य को समग्र रूप से हासिल करने से जुड़े इस मिशन के अंतर्गत लगभग पांच करोड़ लोगों की स्क्रीनिंग की जा चुकी है। विकास के ऐसे बहुआयामी प्रयासों के बल पर अरुणाचल प्रदेश से गुजरात तक तथा जम्मू-कश्मीर से अंडमान निकोबार द्वीप-समूह तक, आदिवासी परिवारों के विकास को नई ऊर्जा मिली है। साथ ही, लोगों में आदिवासी समाज के प्रति जागरूकता और सम्मान का भाव बढ़ा है। मैं इस आदि महोत्सव की सफलता की कामना करती हूं। मैं आशा करती हूं कि जनजातीय गौरव वर्ष के दौरान जनजातीय समाज की उन्नति के अनेक स्वर्णिम अध्याय लिखे जाएंगे। इसी कामना और आशा के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं।
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