Whatsapp: +91 7669297140
Please Wait a Moment
Menu
Dashboard
Register Now
Exercise 1 & 2 ()
Font Size
+
-
Reset
Backspace:
0
Timer :
00:00
सभापति महोदय, मैं रक्षा मंत्रालय की माँगों का समर्थन करने के लिए खड़ा हुआ हूँ। वर्तमान घटनाओं से पता चलता है कि संसार का हर देश अपनी सुरक्षा के बारे में चिंतित है और उसके लिए हर प्रयत्न कर रहा है। इस दृष्टि से अन्य देशों की तरह हमारे देश में भी रक्षा मंत्रालय का महत्व है। मुझे इस बात की खुशी है कि जहाँ अन्य मंत्रालयों की उनके पिछले साल के कामों के बारे में काफी आलोचना हुई है, वहाँ इस मंत्रालय की कम आलोचना हुई है। इससे पता चलता है कि इस मंत्रालय ने पिछले साल अच्छा काम किया है। मौटे तौर पर किसी भी देश की सुरक्षा नीति का लक्ष्य यह होता है कि दूसरे देशों, खास तौर से पड़ोसी देशों, के साथ मित्रता के संबंध स्थापित हों और हम एक दूसरे के मामलों में हस्तक्षेप न करें, लेकिन उसके साथ यह भी जरूरी होता है कि हम अपने देश की सीमाओं और अखंडता की रक्षा करें। इसलिए हमारे देश का यह कर्त्तव्य हो जाता है कि हम अपने पड़ोसियों के कार्यों पर पूरी नजर रखें, क्योंकि आज तक हमारे देश पर जो संकट आए, वे हमारे पड़ोसियों से आए हैं। 1965 में पाकिस्तान के साथ जो लड़ाई हुई और उसके बाद ताशकंद में जो समझौता हुआ, वह सिर्फ कागज़ पर ही रहा, पाकिस्तान ने उस पर कोई अमल नहीं किया। इस दृष्टि से बहुत जरूरी है कि हम अपने देश की सुरक्षा की हर तरह से व्यवस्था करें। हमारा उद्देश्य दूसरों पर आक्रमण करना नहीं है, लेकिन यदि हम पर कोई आक्रमण करे, तो हम में इतनी शक्ति अवश्य होनी चाहिए कि हम उस का डटकर सामना कर सकें । आप जानते हैं कि पिछले दिनों पाकिस्तान के अमरीका और चीन से काफी मदद मिली है। रक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि पिछले साल अमरीका ने पाकिस्तान को 15 सौ करोड़ रुपए की फौजी सहायता दी है। आज जहाँ हम फौजी सामान के लिए अपने कारखानों की मदद से अपनी शक्ति बढ़ाने का प्रयत्न कर रहे हैं, वहाँ पाकिस्तान संसार के देशों से फौजी सामान खरीद रहा है। अपनी नीति के कारण वह सब देशों से लाभ उठा रहा है। मेरा सुझाव है कि हम को भी अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए संसार के अन्य देशों से अधिक से अधिक फौजी सामान खरीदना चाहिए। आज तिब्बत की सीमा पर चीन की डेढ़ लाख फौज खड़ी है। सभापति महोदय, प्रतिदिन छोटी मोटी झड़पें होती रहती है। हमारी फौजें बड़े उत्साह से उन के मुकाबले में खड़ी हैं, उनके हौसले बहुत ऊँचे हैं। लेकिन हमारी सरकार का भी यह कर्त्तव्य है कि उनके हौसले को कभी गिरने न दे। उन्हें हर तरह की सुविधा प्रदान की जाए, जिससे उन का आत्मविश्वास बढ़े। मैं मंत्री महोदय से अनुरोध करूंगा कि सरकार अपनी नीतियों के प्रचार का काम ठीक प्रकार से अपनी फौजों से करे, उन को अच्छे-अच्छे हथियार दे। अनुसूचित जातियों और आदिवासी जातियों के आयुक्त ने जो अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया है, उस प्रतिवेदन को देखने से यह प्रतीत होता है कि इसको तैयार करने में उन्होंने बहुत परिश्रम से कार्य किया है। इसके लिए मैं उनको और उनके सहयोगियों को धन्यवाद देता हूँ, परंतु साथ ही साथ इस प्रतिवेदन के संबंध में कुछ आवश्यक निवेदन भी करना चाहता हूँ। पहली बात तो यह है कि इस प्रतिवेदन को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि इन कार्यों के लिए जिस धन का उपयोग होता है, वह तीन साधनों से उपलब्ध होता है केंद्र सरकार द्वारा, राज्य सरकारों द्वारा और कुछ गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा। प्रतिवदेन के अनुसार जितना धन इन कार्यों पर व्यय करने के लिए दिया जाता है, उतना धन पूरी तरह से व्यय नहीं हो पाता। मैं यह नहीं कह सकता कि आवश्यकता से अधिक धन दिया जाता है या कार्यकर्ताओं को वह धन प्राप्त ही नहीं होता, जिसके कारण से वह बिना खर्च हुए बच जाता है। मैं तो यह चाहता हूँ कि जितना धन दिया जाता है उसका पूरा उपयोग हो और आयुक्त को यह न कहना पड़े कि इस कार्य के लिए जितने धन की आवश्यकता थी, उतना धन नहीं मिल पाया और विवश होकर हम को उस कार्य को बीच में ही रोकना पड़ा। जहाँ तक राज्य सरकारों का संबंध है, बहुत-सी राज्य सरकारें अभी तक इस कार्य में असावधानी से काम ले रही हैं, और इस कार्य को उपेक्षा की दृष्टि से देखती हैं। आयुक्त ने इस बात की शिकायत की है कि बहुत-सी राज्य सरकारों ने अनेक पत्र भेजने के बाद भी अभी तक अपनी रिपोर्ट नहीं भेजी है। मैं चाहता हूँ कि सरकार इस तरफ निष्ठापूर्वक ध्यान दे, राज्य सरकारों पर दबाव डाला जाए कि वे इस दायित्व के प्रति सचेत हों और आयुक्त को उनके कार्य में पूरा-पूरा सहयोग प्रदान करें।
Submit
Submit Test !
×
Dow you want to submit your test now ?
Submit