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सभापति महोदय, किसानों की उपज की आप न अधिक क़ीमत दे सकते हैं न अधिक उपजाने के लिए जो साधन देश में उपलब्ध हैं उनकी तरफ आपका ध्यान जा रहा है। जो कुछ आप कर रहे हैं उससे कोई अच्छा भविष्य नजर नहीं आ रहा है। मैं यही कहना चाहता हूँ कि आप देखें कि आपके कार्यक्रम में कहाँ त्रुटि है, कहाँ कमी है। आपने कर लगा रखे हैं। आपने जो कर लगाए हैं वे तो लगाए ही है, हमारे प्रदेश में तो जमीन पर 25 प्रतिशत ज्यादा कर भी लगा दिया गया है। इतना बोझ अगर किसान पर होगा तो उसकी कमर टूट जाएगी। वह पहले से टूटी जा रही है लेकिन वे इन करों को देने के लिए भी तैयार हैं, यदि आप उस तरह के साधन उन किसानों के लिए तैयार करें। हमारे उत्तर प्रदेश के कुछ जिले हैं, पूर्वी जिले हैं जहाँ पर बहुत बुरी स्थिति है। हमारे सदन के एक सदस्य ने रो-रो कर आपको यह बताया था कि वहाँ लोगों को दो रुपए मज़दूरी में मिलता है। इतनी ही एक दिन की उनकी मज़दूरी है। सरकार ने एक आयोग की नियुक्ति की थी ताकि वहाँ पर कुछ विकास के कार्य किए जाएँ। वह योजना भी अब खटाई में पड़ गई है। आपका ध्यान इन समस्त चीजों की ओर कैसे दिलाया जाए? कैसे आपका ध्यान इन सभी कठिनाइयों की ओर आकर्षित किया जाए? समझ में नहीं आता है। यातायात के साधनों की स्थिति यह है कि ट्रेनों में दूसरे दर्जे में भीड़-भाड़ का कोई ठिकाना नहीं है, उसकी कोई सीमा नहीं है। हर रोज ऐसा मालूम पड़ता है कि कोई मेला चल रहा है। आपके पास अच्छे इंजन हैं, अच्छे गति वाले इंजन हैं, लाइन भी अच्छी है। तो क्यों नहीं दूसरे दर्जे के अधिक डिब्बे लगाए जाते हैं ? लोगों को कुछ सुविधा मिल जाए वह काम नहीं किया जा रहा है। आपको किसान की, देहात में रहने वाले आदमी की, मज़दूर की परवाह नहीं है जो समस्त कठिनाइयों को झेलता है। आपके सारे कार्यक्रम को । पूरा करने की उसमें कहाँ से शक्ति आएगी? कैसे वे अधिक अन्न उपजाकर आपको दे सकेंगे? आप इन सब पर सोच-विचार करें। आपने बड़े-बड़े फार्म बना दिए हैं। क्या उन्हें आपके फार्म से कोई लाभ मिल रहा है? सभापति महोदय, सरकार ने कई कृषि फार्म खोले हैं। क्या ये फार्म घाटे में नहीं चल रहे है? अगर सारे खर्च जोड़ दिए जाएँ, बड़े-बड़े अधिकारियों के वेतन जोड़ दिए जाएँ तो पता चलेगा कि सारे ये कृषि फार्म घाटे में चल रहे हैं। क्या इसी तरह से आप सारे किसानों को घाटे पर खेती करने के लिए मजबूर करेंगे? जिस क्षेत्र से मैं आता हूँ वहाँ एक पुल बना है। मैंने दस वर्ष तक अपनी विधान सभा में इस पुल के लिए कोशिश की है। जिस दिन से मैं यहाँ आया हूँ बराबर उसकी चर्चा करता आ रहा हूँ बराबर कोशिश कर रहा हूँ। मैं कहता हूँ कि गंगा पर वह पुल बने, उस पुल को बनाने का आश्वासन भी मिला था। एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जवाब दिया गया था। यह कहा गया था कि इसको हाथ में लिया जाएगा। अब मालूम हुआ है कि उस योजना को उठाकर ताक पर रख दिया गया है और यह पुल नहीं बनेगा। इन लोगों ने क्या कसूर किया है? यह मैं आपसे जानना चाहता हूँ। हमारे क्षेत्र के लोगों ने पाकिस्तान की लड़ाई में सरकार को हर तरह का सहयोग दिया था, हर तरह की सहायता दी थी। हमारे यहाँ के नौजवान भी मोर्चे पर जाकर डटे। जिस समय पाकिस्तान के साथ हमारा युद्ध चल रहा था तो कहीं कोई बात नहीं थी। अन्न की कमी कहीं नहीं थी। अन्न की कमी भी हमारे विरोधी साथी पैदा करते हैं जो यह चाहते हैं कि सरकार असफल हो जाए। ये लोग जो कहते हैं उसको आप समझें। एक तरफ तो हमारे मित्र की बात है जो देश के बड़े-बड़े शहरों में दंगे करवाते हैं, दूसरी तरफ हम हैं जो कि इनकी बातों को नहीं समझ पाते। इनको सभी वे लोग मिल जाते हैं जो बेकार होते हैं या जो दंगे करवाने के लिए उत्सुक हैं। इसलिए सरकार का इन सारी चीजों की तरफ ध्यान जाना चाहिए और उसको सोचना चाहिए कि क्या तरीका इन सबसे बचने का हो सकता है। एक ही तरी हो सकता है कि इस देश में हर आदमी को काम मिले। देहात में लोगों को करने के लिए काम मिले और खादी कमीशन की जो योजना है और जो कि एक अच्छी योजना है वह ठीक तरह से चले। सौभाग्य से मैं आर्यसमाज संगठन से संबंध रखता हूँ।
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